क्यों माना जाता है स्वास्तिक को पुण्य का प्रतीक?
Tag: Swastik ko kyon subh mana jata hai?
स्वास्तिक शब्द सु+अस्ति+क से बना है। यानि शुभ करनेवाला। यह चिन्ह विश्व की अनेक प्राचीन सभ्यताओं में मिलता है। इसमें चारों दिशाओं में जाती रेखाएँ होती हैं, जो दाईं ओर मुड़ जाती हैं। हिंदुओं के व्रतों, पर्वों, त्योहारों, पुजा एवं हर मांगलिक अवसर पर कुमकुम से स्वास्तिक अंकित किया जाता है। इसका सामान्य अर्थ शुभ, मंगल एवं कल्याण करनेवाला है। जैन और बाउध संप्रदाय में लाल, पीले एवं श्वेत रंग से अंकित स्वास्तिक का प्रयोग होता रहा है। सिंधु घाटी की सभ्यता में ऐसे स्वास्तिक श्रीगणेश का प्रतीक भी है। इस प्रकार सभी मंगल-कार्यों में सबसे पहले बनाया जाता है। इसे रसोई घर, तिजोरी, स्टोर, प्रवेशद्वार, मकान, दुकान, पूजास्थल एवं कार्यालय हर जगह बनाते हैं। भारतीय संस्कृति में लाल रंग का महत्व है और सिंदूर, रोली या कुंकुम से इसे बनाया जाता है। धन चिन्ह बना कर उसकी चारों भुजाओं को कोने से समकोण बननेवाली एक रेखा दाहिनी ओर खींचने से स्वास्तिक बन जाता है। रेखा खींचने का कार्य ऊपरी भुजा से प्रारम्भ करना चाहिए।