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किडनी को स्वस्थ कैसे रखें, किडनी रोगों के लक्षण, किडनी ट्रांसप्लांट, किडनी फेल्योर एवं डायलिसिस क्या है

हम जाने अनजाने कई ऐसी बातें अपने व्यवहार में लाते हैं, जिनसे किडनी को नुकसान (Kidney ko nuksan) पहुचता है। मसलन, डॉक्टर की तमाम सलाहों के बावजूद लोग जरुरत भर पानी नहीं पीते, जो चुपचाप किडनी को डैमेज करता (Kidney ko damage karta) जाता है। जानिए किन छोटी-छोटी बातों का आपको रखना है पूरा ख्याल। किडनी के डैमेज होने केे लिए हम सिर्फ बड़े कारणों को ही जिम्मेवार मानते हैं। लेकिन वास्तव में हमारी जीवनशैली में ही कई ऐसी गलत आदतें होती है, जिनसे किडनी डैमेज (Kidney damage) हो जाते है। इन छोटी बातों का ध्यान रख कर भी किडनी को स्वस्थ रखा (Kidney ko svasth rakhana) जा सकता है।
Kidney
क्या है किडनी रोगों के लक्षण (Symptoms of kidney disease in hindi) :-
किडनी खराब तब मानी जाती है जब वह अपना कार्य ठीक प्रकार से न कर पाये। ऐसे में प्रारंभिक दौर में शरीर में कई प्रकार के लक्षण देखने को मिलते हैं, जिनमे से मुख्या लक्षण (Kidney rogon ke lakchan) इस प्रकार है:-
  • सुबह के समय चेहरे पर ज्यादा सूजन होना। सूजन दिन भा रहती है, लेकिन सुबह में अघिक होती है।
  • कमजोरी और थकान महसूस होना
  • भूख न लगना और उल्टी, जी-मिचलने जैसी समस्या होना।
  • घुटनों में सूजन।
  • शरीर में खून की कमी होना।
  •  कमर के नीचे दर्द रहना।
  •  दवा खाने के बाद भी बीपी का कंट्रोल न होना।
पांच प्रकार का होता है किडनी फेल्योर (Types of Kidney Failure in hindi)

एक्यूट प्री-रीनल किडनी फेल्योर (Acute Pre-renal Kidney Failure):- यह किडनी में खून (Kidney me khoon) की पर्याप्त मात्रा नहीं जाने  से होता है। प्रयाप्त मात्रा में खूंन न मिलने से किडनी खून से विषैले तत्वों को बाहर नहीं निकाल पाता है। इसे दवाइयों से ठीक किया जा सकता है। 

एक्यूट इंट्रिन्सिक किडनी फेल्योर (Acute Intrinsic Kidney Failure):- यह एक्सीडेंट या किसी अन्य वजह से किडनी के क्षतिग्रस्त होने से होता है। शरीर से अत्यधिक खून बह जाने से भी होता है . इसके होने का मुख्य कारण किडनी में ऑक्सीजन की कमी (Kidney me oxygen) होती है।

क्रॉनिक प्री-रीनल किडनी फेल्योर (Chronic Pre-renal Kidney Failure):- एक्यूट प्री-रीनल किडनी फेल्योर के ट्रीटमेंट के बाद भी समस्या लंबे समय तक बनी रहती है और ठीक नहीं होती, तब इसे क्रॉनिक प्री-रीनल किडनी फेल्योर कहते हैं। इसमें किडनी पूरी तरह खराब हो जाता है।

क्रॉनिक इंट्रिन्सिक किडनी फेल्योर (Chronic Intrinsic Kidney Failure):- लंबे समय तक एक्यूट इंट्रिन्सिक किडनी फेल्योर ठीक न होने पर क्रॉनिक इंट्रिन्सिक किडनी फेल्योर हो जाता है।

क्रॉनिक पोस्ट-रीनल किडनी फेल्योर (Chronic Post-Renal Kidney Failure):- यह पेशाब को रोकने के कारण होता है। ऐसा करने से यूरिनरी ट्रेक्ट किडनी पर प्रेशर डालता है, जिससे किडनी डैमेज होने की आशंका होती है।

किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत कब पड़ती है (Kidney Transplant in hindi)

किडनी जब दवाइयों या अन्य तरीके से ठोक नहीं हो पाता है, तब अंतिम उपचार किडनी ट्रांसप्लांट (Kidney transplant) है। इसके लिए किडनी डोनर की जरूरत होती है। ट्रांसप्लांट के 90% मामले सफल रहते हैं और 4-5 व्र्ष तक सही तरीके से कार्य करते हैं। ट्रांसप्लांट के साइड इफेक्ट (Kidney transplant ke side effect) भी है। इसमें सर्जरी के बाद मरीज को इम्यूनोस्प्रेसिव ड्रग दिया जाता है, ताकि नये किडनी को शरीर रिजेक्ट न करें।  लेकिन इससे शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कोई भी व्यक्ति जिसका ब्लड ग्रुप मरीज से मिलता हो, किडनी डोनर हो सकता है। डोनर की आयु 18 से 55 साल के बीच होनी चाहिए। डोनर को भी एक महीने तक डॉक्टर की देख रेख में रहना पड़ता है।

ट्रांसप्लांट के बाद रखें ध्यान (Transplant ke bad kya dhyan rakhen)

  • सर्जरी के बाद इंफेक्शन होने की आशंका बढ़ जाती है, ऐसे में सफाई के लिहाज से सावधानी बरतने की जरूरत है। अत: हाइजीन का ख्याल रखें।
  • सर्जरी के बाद पेट दर्द, बुखार, जुकाम आदि होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। सेल्फ मेडिकेशन न करें।सलाह के अनुसार लें।
  • भोजनं समय पर ले।
क्या है डायलिसिस:- (What is dialysis in hindi)

डायलिसिस ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें किडनी का कार्य मशीन करती है।मरीज की किडनी फेल हो जाये ओर तुरंत ट्रांसप्लांट संभव नहीं हो, तो कुछ समय के लिए मरीज को डायलिसिस पर रखा जाता है। डायलिसिस के दौरान मरीज को काफी परहेज रखना होता है। डायलिसिस किडनी फेल्योर का ट्रीटमेंट नहीं होता, बल्कि अस्थायी किडनी का कार्य करता है।
इन्हें भी देखें: किडनी के पथरी (Kidney stone) की जांच कैसे होती है?
ऐसे रखें किडनी को स्वस्थ (How  to Keep your kidney healthy)


पानी की कमी:- आज-कल हमारी जीवन शैली कुछ ऐसी हो गई है कि हम खुद के लिए भी समय निकाल नहीं पाते है। काम  में हम इतना व्यस्त हो जाते हैं कि शरीर के लिए जरूरत भर पानी भी नहीं पी पाते हैं। इसके कारण शरीर की सफाई ठीक से नहीं हो पाती और किडनी डैमेज हो जाता है। कभी-कभी इससे किडनी में स्टोन भी बन जाते है। इन समस्याओं से बचने के लिए तीन से चार लीटर पानी रोजाना पीने कि आदत डालना जरूरी है।

नमक:- कई लोगों को हम अक्सर देखते हैं कि खाना खाने के पहले वे अपने भोजन में अतिरिक्त नमक का इस्तेमाल करते हैं। आपको यह सामान्य लगता होगा। यदि आपको इस तरह कि आदत है तो इससे बचे। क्योंकि इस छोटी सी आदत से आपके किडनी पर बुरा  प्रभाव पड़ता है। नमक में सोडियम होता है। यह ब्लड प्रेशर के बढ़ने का बड़ा कारण है, जो समय के साथ किडनी को भी डैमेज करता है। अतः भोजन के साथ अतिरिक्त नमक का सेवन न करें। 

धुर्मपान:- स्मोकिंग से हाई बीपी की समस्या बढती है। बीपी बढ़ने के कारण अन्य अंगो के साथ-साथ किडनी पर भी दबाव पड़ता है। इससे किडनी फेल्योर का खतरा कई गुना बढ जाता है, साथ ही किडनी के कैंसर का खतरा भी बढ़ता है। अतः धुर्मपान से बचें। 

पेन किलर:- जब कभी भी हमे हमारे शरीर किसी भी अंग में दर्द कि शिकायत होती है तो हम बिना सोचे समझे ही दर्द कि दावा का प्रयोग कर लेते हैं। उस समय तो हमे उस दर्द से निजात मिल जाती है। लेकिन दर्द की दवाओं (Pain Killer) का प्रयोग बिना डॉक्टर की सलाह के करने से शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचता है। चूंकि किडनी शरीर का फिल्टर है, इसलिए दवाइयां इसमें पहुंच का उसे भी डैमेज करने लगती है। अतः बिना डॉक्टर कि सलाह के दर्द कि दवाइयों का सेवन न करें। 

हेपेटाइटिस बी और सी:- इस रोग में हमे थोड़ी भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए क्योंकि इससे शरीर के कई अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके कारण भी किडनी के नेफ्रॉन डैमेज होते है। अत: किसी मरीज को यदि किडनी की समस्याएं होती है तो डॉक्टर हेपेटाइटिस की जांच की भी सलाह देते हैं। ताकि अधिक डैमेज से बचाया जा सके।

डायबिटिक नेफ्रोपैथी:- डायबिटीज में शरीर में ब्लड शूगर लेबल बढ़ जाता है। इस कारण ब्लड वेसेल्स पर बुरा प्रभाव पड़ता है। किडनी शरीर का फिल्टर है। इसमें फिल्टर करने के लिए असंख्य यूनिट होते है। इन्हें नेफ्रान कहते हैं। उनमें भी सूक्ष्म ब्लड वेसेल्स होते हैं। ब्लड शूगर बढ़ जाने के कारण ये वेसेल्स भी डैमेज हो जाते हैं।इससे एक-एक करके नेफ्रॉन डैमेज हो जाते हैं। इसे ही डायबिटिक नेफ्रीपैथी कहते हैं। अत्यधिक डैमेज होने की स्थिति में प्रोटीन फिल्टर नहीं हो पाता है। इस कारण पेशाब में एल्ब्यूमिन आने लगता है। इसका पता पेशाब की जांच से चलता है। एक बार किडनी के डैमेज हो जाने की स्थिति में इसके फिल्टर करने की क्षमता कम हो जाती है। यदि समय पर इसका पता चल जाये, तो समय पर किडनी को बचाया जा सकता है अन्यथा किडनी फेल्योर का खतरा बढ़ जाता है। अतः ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करें कि कोशिश करनी चाहिए।

पेशाब को रोकना:- पेशाब को रोक कर रखने पर यह किडनी पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। ऐसा करने से किडनी पर दबाव पड़ता है। ऐसा बार बार किया जाये, तो किडनी की कार्यक्षमता पर असर पड़ता है। 

ये पांच आदतें किडनी के लिए है खतरनाक
  • व्यायाम न करना
  • शराब का सेवन करना
  • अत्यधिक नॉन वेज खाना
  • पानी कम पीना और इससे डीहाइड्रेशन होना
  •  फास्ट फूड और सॉफ्ट ड्रिंक्स का सेवन

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