सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अर्ध शलभासन करने की विधि (Ardhshalbhasan in hindi)

अर्ध शलभासन (Ardhsalbhasana)

जिन लोगों को गंभीर कमर का दर्द हो या पीठ की तकलीफ हो, उनके लिए 'अर्ध शलभासन' (Ardhsalbhasan) अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस आसन से विशेष रूप से पीठ के निचले भाग की तंत्रिकाओं को लाभ मिलता है। यह पीठ की मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है। (Kamardard ewam pith ke dard ke liye yogasan)
अर्ध शलभासन पीठ के निचले भाग को स्वस्थ व शक्तिशाली बनाने में विशेष लाभकारी है। यह सरल आसन है, जो पीठ और कमर के लिए बहुत उपयोगी है। साइटिका, स्पाइन व स्लिप डिस्क के रोगी के लिए यह सटीक अभ्यास माना गया है। (Yogasana for back pain, spinal chord and slipdisc).

हम यहां पर 'अर्ध शलभासन' के दो प्रकार (Two types of ardh-salbhasana) बताने जा रहे हैं।

प्रथम प्रकार (First method of Ardhsalbhasana):

इसके लिए आप जमीन में पेट के बल सीधे लेट जाएँ। आपके दोनों हाथों के हथेलियों को अपनी जांघों के नीचे रखें। दोनों पैरों को एक साथ सीधे सटा कर रखें और टुड्ढ़ी को जमीन पर रखें। पूरी शरीर एक सीधी लाइन में रहेगी। यह पहली अवस्था है। अब आप श्वास लेते हुए दाहिने पैर के घुटने को बिना मोड़े हुए अपनी क्षमतानुसार पीछे की तरफ ज्यादा से ज्यादा ऊपर उठाएं, इस दौरान बायां पैर सीधा रहेगा। इसके पश्चात श्वास छोड़ते हुए दाहिने पैर को नीचे लाएं। अब फिर इसी अभ्यास को बायें पैर से करें। इस प्रकार से दोनों पैरों से अलग-अलग पांच-पांच बार इस अभ्यास को दुहराएं। क्षमतानुसार इसकी संख्या को बढ़ा भी सकते हैं।

श्वसन : पैर को ऊपर उठाते समय श्वास अंदर लें और ऊपर रुकते समय श्वास भी अपने अंदर रोकें और जब आप पैर को नीचे लाना शुरू करें। तब श्वास को छोड़ना शुरू करें।

अवधि : यह आसन भी पांच चक्रों तक किया जा सकता है। क्षमतानुसार चक्रों की संख्या को बढ़ाया भी जा सकता है।

सगजता : अभ्यास के दौरान आपकी सजगता श्वास के साथ शरीर की गति पर तथा पीठ के निचले हिस्से, पेट और हृदय पर होनी चाहिए।
द्वितीय प्रकार (Second method of Ardh-salbhasan):

आसन की विधि (Aasan karne ke vidhi) : पेट के बल जमीन पर लेट जाएं। दोनों पैर एक साथ रहेंगे तथा ललाट जमीन पर और दोनों भुजाएं सिर के ऊपर आगे की ओर तने रहेंगे। टुड्ढ़ी को जमीन पर भी रखा जा सकता है। पूरे अभ्यास के दौरान पैर और भुजा सीधी रहेगी। अब श्वास लेते हुए सामने से बायां हाथ और पीछे से दायां पैर क्षमतानुसार ज्यादा से ज्यादा ऊपर उठाएं, साथ ही सिर भी उठाएं और फिर श्वास छोड़ते हुए हाथ और पैर को नीचे लाएं। अब पुनः सामने से दायां हाथ और पीछे से बायें पैर को ऊपर उठाएं और पूर्ववत श्वास छोड़ते समय प्रारंभिक स्थित मेन लौट जाएं। इस अभ्यास को पांच चक्र तक किया जा सकता है। क्षमतानुसार इसकी संख्या को बढ़ाया जा सकता है।

श्वसन : अभ्यास के दौरान पैर, भुजा और सिर को ऊपर उठाते समय श्वास लें तथा अंतिम स्थिति में श्वास को अंदर रोकें। पैर, भुजा और सिर को वापस प्रारंभिक स्थिति में लाते समय अपना श्वास छोड़े।

अवधि : कम-से-कम पांच चक्र तक किया जा सकता है।

सजगता : इस अभ्यास के दौरान सजगता शरीर की गति के साथ श्वास के तालमेल पर तथा उठे हुए पैर की उंगलियों से दूसरी तरफ के उठे हुए हाथ की उंगलियों तक शरीर के तिरछे खिंचाव पर रहनी चाहिए।

( दिल एक मिनट में 72 बार धड़कता है। अतः दिन में एक लाख बार, एक वर्ष में 36 लाख बार धड़कता है )

आसन के लाभ (Aasan ke labh):

इन दोनों आसन के लाभ बहुत हद तक एक-दूसरे से काफी मिलते-जुलते हैं। इसको करने से पीठ की दर्द, साइटिका या स्लिप डिस्क में काफी लाभ मिलता है। इसके अलावा यह कब्ज को भी दूर करता है। यह आसन उनलोगों के लिए काफी लाभकारी है जिनकी पीठ कमजोर है या उसमें कड़ापन है, क्योंकि यह पीठ की पेशियों को शक्ति प्रदान करता है। विशेष रूप से पीठ के निचले भाग की तंत्रिकाओं को लाभ मिलता है। जिन लोगों को गंभीर कमर की दर्द हो या पीठ में तकलीफ होती है। उनके लिए ये दोनों ही आसन अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

दुनिया के किन देशों में लोकतंत्र नहीं है?

दुनिया के किन देशों में लोकतंत्र नहीं है? घाना, म्यांमार और वेटिकन सिटी किसी न किसी रूप में लोकतंत्र की परिधि से बाहर के देश हैं। इसके अलावा सऊदी अरब, जार्डन, मोरक्को, भूटान, ब्रूनेई, कुवैत, यूएई, बहरीन, ओमान, कतर, स्वाजीलैंड आदि देशों में राजतंत्र है। इन देशों में लोकतान्त्रिक संस्थाएं भी काम करती हैं। नेपाल में कुछ साल पहले तक राजतंत्र था, पर अब वहां लोकतंत्र है। दुनिया में 200 के आसपास देश हैं, जिनमें से तीस से चलिश के बीच ऐसे देश हैं, जो लोकतंत्र के दायरे से बाहर हैं या उनमें आंशिक लोकतंत्र है। जिन देशों में लोकतंत्र है भी उनमें भी पूरी तरह लोकतंत्र है या नहीं यह बहस का विषय है।  लोकतंत्र और गणतंत्र में क्या अंतर है? लोकतंत्र एक व्यवस्था का नाम है। यानी हम जब भी फैसले करें तब यथेष्ट लोगों की सहमति हो, हालांकि यह अनिवार्य नहीं, पर व्यावहारिक बात है की उसकी संवैधानिक व्यवस्था भी होनी चाहिए। जब शासन पद्धति पर यह लागू हो तो शासन व्यवस्था लोकतान्त्रिक होती है। इसमें हिस्सा लेने वाले या तो आम राय से फैसले करते हैं और यदि ऐसा न हो तो मत-विभाजन करते हैं। ये निर्णय सामान्य बहुम

डायरिया क्या है और इससे कैसे बचें What is Diarrhea in hindi

यदि आपको दिन में तीन बार से अधिक पतला शौच हो तो यह डायरिया के लक्षण (Diarrhea ke lakchan)  होते हैं। यह बीमारी मुख्यतः रोटा वायरस के शरीर में प्रवेश से होता है। यह दो प्रकार का होता है - एक्यूट और क्रोनिक डायरिया।  डायरिया के कारक (Dairiya ke karak) :- डायरिया (Dayria) साधारणता दूषित पनि पीने से होता है। कई बार यह निम्नलिखित कारणों से भी होता है। 1. वायरल इन्फेक्शन के कारण 2. पेट में बैक्टीरिया के संक्रामण से 3. शरीर में पानी कि कमी से 4. आस-पास सफाई ठीक से न होने से डायरिया के लक्षण (Diarrhea ke laxan) :- दिन में लगातार तीन से अधिक बार पतला शौच आना डायरिया का मुख्य लक्षण है। यह साधारणता एक हफ्ते में ठीक हो जाता है। यह क्रोनिक डायरिया (Chronic Diarrhea) कहलाता है। समय पर इलाज न होने पर यह खतरनाक हो जाता है। यह ज़्यादातर बच्चों में होता है और इसमें मृत्यु का सबसे बड़ा कारण डिहाइड्रेशन होता है। पेट में तेज दर्द होना, पेट में मरोड़ होना, उल्टी आना, जल्दी जल्दी दस्त होना, बुखार होना, कमजोरी महसूस करना, आँखें धंस जाना इसके प्रमुख लक्षण हैं। डाइरिया का इलाज (Dairiya ka

हाइपरएसिडिटी क्या है? What is Hyper acidity in Hindi

हाइपरएसिडिटी क्या है? अगर आपको भूख काम लगती है, पेट खाली होने पर जलन होती है, जो छाती तक महसूस होती है, बार-बार खट्टे डकार आती है, पेट एवं छाती में दर्द होता है, आपका शौच सही तरीके से नहीं होता है, सिर में भारीपन रहता है और नींद नहीं आती है तो समझ लीजिए कि आपको हाइपरएसिडिटि से पीड़ित है। हाइपरएसिडिटि को अति अम्लता भी कहा जाता है। इसका प्रमुख कारण है अनियमित आहार, चाय-कॉफी एवं सॉफ्ट ड्रिंग्स का अधिक सेवन, तीखे-मसालेदार भोजन का सेवन या देर तक खाली पेट रहना, मांसाहारी भोजन का अधिक सेवन, भूख लाग्ने पर भोजन न कर चाय-कॉफी का सेवन करना, सोने का समय निर्धारित नहीं होना, मानसिक तनाव, फल-सब्जियों में कीटनाशकों का अधिक प्रयोग इत्यादि। उपचार :- इस रोग का उपचार बस इसके कारकों को दूर कर किया जा सकता है। नियमित समयानुसार भोजन ग्रहण करें। चाय-कॉफी और सॉफ्ट ड्रिंक्स का सेवन कम करें। तीखे व मसालेदार भोजन का सेवन बंद कर कर दें। इससे पीड़ित रोगी का अपना पेट खाली नहीं रखना चाहिए। थोड़े-थोड़े अंतराल में कुछ अच्छा कहते रहना चाहिए। भोजन को खूब चबा-चबा कर खाना चाहिए। खाली पेट में ठंडा दूध का सेवन बहुत फायदेमंद हो

इ-मेल में @ का क्या महत्व है?

इ-मेल में @ का क्या महत्व है? अँग्रेजी के एट या स्थान यानी लोकेशन का वह प्रतीक चिन्ह है। शुरू में इसका इस्तेमाल गणित में 'एट द रेट ऑफ' यानी दर के लिए होता था। इ-मेल में इसके इस्तेमाल ने इसके अर्थ का विस्तार कर दिया। इ-मेल में पते के दो हिस्से होते हैं। एक होता है लोकल पार्ट जो @ के पहले होता है। इसमें अमेरिकन स्टैण्डर्ड कोड फॉर इन्फोर्मेशन इंटरचेंज (ईएससीआईआई) के तहत परिभाषित अक्षर, संख्या या चिन्ह शामिल हैं। चिन्ह @ के बाद डोमेन का नाम लिखा जाता है। यानी इस चिन्ह के पहले व्यक्ति या संस्था का नाम बताने वाले संकेत और उसके बाद डोमेन नाम। कुछ लोगों को लगता है की इस पते को केवल लोअर केस में लिखा जा सकता है। जबकि इसे अपर और लोअर दोनों केस में लिख सकते हैं। Tag: email pate mey @ ka kya mahatva hai? 

पहला इ-मेल किसने और कब भेजा था?

पहला इ-मेल किसने और कब भेजा था? इ-मेल इलेक्ट्रोनिक मेल का संक्षिप्त रूप है। दुनिया का पहला इ-मेल सन 1971 में अमेरिका के कैम्ब्रिज नामक स्थान पर रेमोण्ड एस टॉमलिन्सन नामक इंजीनियर ने एक ही कमरे में रखे दो कम्प्युटरों के बीच भेजा था। कम्प्युटर नेटवर्क अर्पानेट से जुड़े थे। अर्पानेट एक मायने में इंटरनेट का पूर्वज है। यह संदेश को एक जगह से दूसरी जगह भेजने का प्रयोग था। इ-मेल को औपचारिक रूप लेने में कई साल लगे। अलबत्ता भारतीय मूल के अमेरिकी वीए शिवा अय्यदूरई ने 1978 में एक कम्प्युटर प्रोग्राम तैयार किया, जिसे 'ई-मेल' कहा गया। इसमें इनबॉक्स, आउटबॉक्स, फोल्डर्स, मेमो, अटैचमेंट्स ऑप्शन थे। सन 1982 में अमेरिका के कॉपीराइट कार्यालय ने उन्हें इस आशय का प्रमाणपत्र भी दिया। इस कॉपीराइट के बावजूद उन्हें इ-मेल का आविष्कारक नहीं कहा जा सकता।  Tag: Who sent the first email and when?