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घमंडी राजा की हार - लघु कथा

बहुत प्राचीन समय की बात है। एक राजा था। उसका नाम उदय सिंह था। वह बहुत अत्याचारी और क्रूर राजा था। उसका एक रसोइया था। जिसका नाम रामू था। रामू का अस्त्र-शस्त्र चलाने में कोई जोड़ नहीं था। अक्सर राजा युद्ध में उसे अपने साथ ले जाते थे। एक दिन रसोइया रामू से भोजन परोसने में देर हो गयी। जिसके कारण राजा उदय सिंह ने क्रोध में आकर रामू के दोनों हाथ कटवा दिये। रसोइया रामू ने सोचा मेरी इतनी सी गलती के लिए इतनी बड़ी सजा। उसने राजा को सबक सीखने की प्रतिज्ञा ली। वह राज्य के गरीब बच्चों को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान देने लगा। एक दिन जब रामू बच्चों को शस्त्र सीखा रहा था। इस दौरान वह राजा द्वारा किये जा रहे अत्याचारों के बारे में भी उन बच्चों को बताता था। एक दिन सैनिकों ने उसकी बात सुन ली। उसने जाकर सारी बातें राजा को बतायी। क्रोध में आकर राजा ने रामू और उसके शिष्यों पर आक्रमण कर दिया। 

रामू के शिष्यों ने राजा उदय सिंह के अनेक योद्धाओं को मार डाला। इस प्रकार राजा के बहुत कम सैनिक बचे। इससे पूरे राज्य में हाहाकार मच चुका था। अपनी हार को देखते हुए राजा स्वयम युद्ध करने आए। किन्तु रसोइया रामू के सैनिकों को क्षणभर में ही राजा उदय सिंह को बंधक बना कर रामू के सामने खड़ा कर दिया। रामू ने राजा से पूछा - महाराज मेरी एक गलती के लिए आपने मुझ कमजोर, बेबस और गरीब के हाथ कटवा दिये, आज आप उसी रसोइया रामू के सामने बंदी बन कर खड़े हैं। यदि मैं चाहूं, तो आपके प्राण भी ले सकता हूँ। पर मैंने आपका नमक खाया है, इसलिए प्राण नहीं लूंगा। लेकिन इतना अवश्य कहूँगा की किसी को भी गरीब और कमजोर समझ कर सताना अच्छी बात नहीं, इसे सदा ध्यान में रखियेगा। इतना कह कर रामू ने राजा को कैद से मुक्त कर दिया। राजा शर्म से सिर झुका कर महल की ओर चल पड़ा।

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