जब आप शरीर से स्वस्थ्य रहेंगे तो आप हर मुश्किल का सामना कर सकेंगे। स्वस्थ जीवन के लिए योगासन बेहद जरूरी है। योग न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी हमे स्वास्थ्य रखता है। परंतु क्या हर तरह का योगासन हर व्यक्ति के लिए अनुकूल होता है। हमारा जबाब होगा नहीं। योगासन भी एक अच्छे प्रशिक्षक कि निगरानी में होना चाहिए। हर बीमारी के लिए अलग-अलग योगासन निर्धारित किया गया है। आज हम यहाँ हृदय रोगियों को कौन-कौन सा योगासन करना फायदेमंद होगा इसके बारे चर्चा करेंगे। हृदय रोगियों को कभी भी कठिन आसन नहीं करना चाहिए। कठिन आसन करने से रोगी पर प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है। अतः आज हम यहाँ हृदय रोगियों के लिए फायदेमंद कुछ हल्के आसनों कि चर्चा करेंगे। (Yogasan for heart patient in hindi)
अनुलोम-विलोम (Anulom - Vilom in hindi)
यह एकमात्र प्राणायाम है जिसे कोई भी कर सकता है। इससे शरीर के अनुकंपी और परानुकंपी तंत्रिका तंत्र संतुलित होते हैं। जिससे हृदय की धड़कन सही रहती है। इसको एक सिटिंग में 5-10 मिनट की अवधि तक कर सकते हैं।
करने की विधि: इस प्राणायाम को करने के लिए सुबह का समय और खाली पेट होना बेहद जरूरी है। अगर आप रात के समय इस प्राणायाम को करते हो तो यह जरूर सुनिश्चित कर लें की 4-5 घंटे पहले आपने कुछ खाया नहीं हो। सिद्धासन की मुद्रा में बैठ जाएँ। आपका सिर ताना हुआ, शरीर सीधा, हाथ घुटनों पर, आँखें बंद और मन शांत होना चाहिए। इस स्थिति में 15 से 30 सेकेंड रहें तत्पश्चात प्राणायाम शुरू करें।
- बायां हाथ घुटनों पर ही हो और दाहिना हाथ आपकी नाक के ऊपर रखें। दाहिने हाथ की पहली उंगली मुड़ी हुई हो और अंगूठा और बाकी की उँगलियाँ खुली हो।
- पहले नाक के बाएँ छिद्र से सांस लेना शुरू करें, इस समय अंगूठे की सहायता से नाक का दाहिना छिद्र बंद कर लें।
- 3 से 5 सेकेंड तक सांस रोकें तत्पश्चात दाहिने छिद्र से अंगूठा हटा कर बीच वाली उंगली की सहायता से नाक का बायां छिद्र बंद करके सांस छोड़ दें।
- इसी तरह अब दाहिना छिद्र से सांस लें और बायां छिद्र से छोड़ें। इस क्रम को आप 15-20 बार दोहराएँ। सांस लेते समय अपने फेफड़ों को हवा से पूरी तरह भर लें तथा छोड़ते समय पूरी तरह खाली कर दें। इस प्राणायाम की शुरुआत हमेशा नाक के बाएँ छिद्र से करें और अन्त भी बाएँ छिद्र से ही करें।
इस आसान से मेरुदंड और मांसपेशियों में लचिलापन आता है। शरीर का तंत्रिका तंत्र नियंत्रित रहता है। पेट और सीने में खून का संचार अच्छा होता है और हृदय पर दबाव कम पड़ता है। यह प्रक्रिया एक सिटिंग में 10 बार कर सकते हैं। जिनको रीढ़ की हड्डी में दर्द, टीबी व ट्यूमर की समस्या है वे न करें।
करने कि विधि:
- इस आसन को करने के लिए वज्रासन कि मुद्रा में बैठ जाएँ और हाथों को फर्श पर आगे कि ओर रखें।
- अपने दोनों हाथों पर थोड़ा भार डालते हुए अपने कूल्हों को ऊपर उठाएँ।
- अपनी जांघों को ऊपर कि ओर सीधा करके पैर के घुटनों पर 90 डिग्री का कोण बनाए तथा छाती को फर्श के समानांतर कर लें।
- अब आप एक लंबी सांस लें और अपने सिर को पीछे कि ओर झुकाएँ, अपनी नाभि को नीचे से ऊपर कि तरफ धकेलें और रीढ़ के हड्डी का निचले भाग को ऊपर उठाएँ।
- अब अपनी सांस को बाहर छोड़ते हुए अपने सिर को नीचे कि ओर झुकाएँ और मुंह कि ठुड्डी को अपनी छाती से लगाने का प्रयास करें।
- इस स्थिति में अपने घुटनों के बीच कि दूरी को देखें और ध्यान रखें कि इस मुद्रा में आपके हाथ झुकने नहीं चाहिए।
- अपनी सांस को लंबी और गहरी रखें। अब फिर से अपने सिर को पीछे कि ओर करें और इस प्रक्रिया को दोहराएँ। इस क्रिया को आप 10-20 बार कर सकते हैं।
इस प्राणायाम से न केवल शरीर बल्कि मन भी स्वस्थ रहता है। मानसिक तनाव कम होता है। है बीपी और हृदय रोगों से बचाव होता है। एक सिटिंग में तीन बार दोहरा सकते हैं। मिर्गी और ब्रेन ट्यूमर के रोगी इसे न करें।
करने की विधि: यह आसन सूर्योदय एवं सूर्यास्त दोनों वक्त किया जा सकता है। इसके लिए पद्मासन अथवा सुखासन की मुद्रा में बैठ जाएँ। अपने दोनों आँखों को बंद कर मन और चित्त को शांत कर लें। अपने मेरुदंड को बलकुल सीधा और दोनों हाथो को बगल में अपने कंधों के समानांतर फैलाए।
- अपने हाथों को केहुनियों से मोड़ते हुए हाथ को कानों के समीप ले जाए।
- दोनों हाथों के अँगूठों से दोनों कानों को बंद कर लें।
- अब नाक से सांस भर कर धीरे-धीरे गले से भ्रमर की गुंजन के साथ सांस छोड़े।
- ध्यान रखें कि सांस छोड़ते समय कंठ से भवरे के समान गुंजन कि आवाज आना चाहिए तथा आवाज सांस छोड़ने तक निरंतर एक समान होना चाहिए।
- गुंजन करते वक्त जीभ को तालु से लगाएँ, दांतों को खुला रखें और होंठ बंद रखें तथा गुंजन कि आवाज को मस्तिष्क में अनुभव करें। इस अभ्यास को 5 से 10 बार तक कर सकते हैं।
यह आसान सीने की क्षमता को बढ़ाता है जिससे खून में ऑक्सीज़न की मात्र बढ़ती है। हृदय का कार्य ठीक रहता है। इस आसान को एक बार में तीन-तीन बार कर सकते हैं। इसमें 10 सेकेंड के लिए शरीर को एक ही स्थित में रखते हैं। गर्भवती महिलाएं और हर्निया के रोगी इसे करने से बचें।
- पीठ के बल लेट जाइए। इसके बाद अपने दोनों पैरों को कूल्हे की तरफ खींचें।
- दोनों पैरों में थोड़ा अंतर रख लें व हाथों से पैरों के टखनों को पकड़ लें। ध्यान रखें कि आपके पैर एक दूसरे के समानांतर होने चाहिए।
- अब अपनी पीठ, कूल्हे और जांघों के साथ ऊपर की तरफ उठने का प्रयास कीजिए। यहां कमर को ज्यादा से ज्यादा ऊपर उठा लें और सिर व कंधे जमीन पर ही रहने दें।
- इस बात का ध्यान दीजिए कि आपकी ठुड्डी आपकी छाती से टच करती हो।
- अंतिम स्थिति में पहुंचने के बाद सांस की गति सामान्य रखें, कुछ देर के लिए रोकें।
- लौटते समय पहले अपनी पीठ को जमीन पर लाएं, फिर कमर का ऊपरी हिस्सा व अंत में कमर जमीन पर ले आएं।
इसे नियमित करने से पाचन ठीक रहता है जिससे कोलेस्ट्रॉल का जमाव नहीं होता है। हार्ट डीजीज का खतरा घटता है। इसे एक सिटिंग में तीन बार करें। इसमें शरीर को 10 सेकेंड तक रोककर रखें। स्लिप डिस्क के रोगी व गर्भवती महिलाएं न करें।
करने की विधि:
- फर्श पर पेट के बल शवासन मुद्रा में आराम से लेट जाइये।
- अपने बाएं घुटने को मोड़िए और दोनों हाथों की सहायता से जितना संभव हो सके उसे पेट के पास तक ले आयें।
- अब सांस छोड़ते हुए अपने दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में फंसायें और घुटनों के नीचे रखिए और उनकी सहायता से अपने बाएं घुटने से सीने को छूने की कोशिश कीजिए।
- इसके बाद अपना सिर जमीन से ऊपर उठाइये और घुटने से नाक से छूने की कोशिश कीजिए।
- सिर को ऊपर उठाने और नाक को घुटनों से छूने के बाद 10 से 30 सेकेंड तक इसी मुद्रा में बने रहिए और धीरे-धीरे सांस छोड़िये।
- अब यही पूरी प्रक्रिया दाएं पैर से भी कीजिए और 3 से 5 बार इस मुद्रा को दोहराइये।